गुर्जर समाज की यह अनोखी परंपरा... दीपावली पर करते है पितरों का श्राद्ध -ब्लॉग अर्जुन चांदना📝

गुर्जर समाज की यह अनोखी परंपरा... दीपावली पर करते है पितरों का श्राद्ध 
ब्लॉग 114.
एडवोकेट अर्जुन चांदना
भालता(झालावाड़).  प्रकाश का पर्व दीपावली पर्व जहां देश भर में समूचे हिन्दू धर्म के लोग मां भगवती लक्ष्मी की पूजा कर धूमधाम से मनाते है। वही भारत मे एक ऐसा भी समाज है, जो दीपावली के दिन श्राद्ध ओर पिंडदान करता है। जी हां बात कर रहे है झालावाड़ जिले के गुर्जर समाज की, जो दीपावली पर पितरों का श्राद्ध करता है। झालावाड़ के गुर्जर बाहुल्य गांवों में समाज के लोग पूर्वजो का श्राद्ध दीपावली के ही दिन करते है। दीपावली के दिन गुर्जर समाज बुजुर्ग, युवा,  बाल बच्चें नदी तालाबों कुएं या जलाशयों पर जाकर सामूहिक रूप से अपने पूर्वजों का तर्पण करते है। जिसे छाट परम्परा के नाम से जाना जाता है। इनके श्राद्ध पक्ष में कोई श्राद्ध नहीं किया जाता है। परम्परा के अनुसार अमावस्या के दिन से 2 दिन पहले घरों में बड़े बूडे़ आ जाते है। और वहीं दो दिन तक अपने पूर्वजों की याद में  पूजा अर्चना की जाती है। एक तरह से उस दिन घरों मे मातम जैसा माहौल रहता है। घरों में महिलाओं द्वारा चक्की(आटा पीसने की घट्टी) से ही आटा पिसा जाता है।

(पानी मे जलीय जीवों को खाद्य सामग्री अर्पित कर, शांति ओर खुशहाली की कामना करते)

दीपावली के दिन कार्तिक अमावस्या पर गांव के सभी गुर्जर समाज के लोग नदी जलाशयों पर एक लंबी सामूहिक पंक्ति बनाकर पूजन पाठ धूप ध्यान कर एक विशेष प्रकार का ओजीझांड़ा पौधा से बेल बनाते है। जिसे बेलड़ी लागना.. बोलते है। उक्त सभी लोग नदी किनारे एक दूसरे का हाथ पकड़कर मानव श्रृंखला बनाते हुए पानी मे उतरकर डाब-दुब लेकर एक पंक्ति में बेल-बेलड़ी बनाते है। हाथों में खीर पूड़ी लेने के बाद पानी मे जलीय जीवों को खाद्य सामग्री अर्पित कर अपने-अपने पूर्वजों को उक्त पुण्य समर्पित कर शांति ओर खुशहाली की कामना करते है। इसमें विशेष तौर पर परिवार में नवागत सदस्य के पंक्तिबद्ध होने पर उस परिवार द्वारा गुड़ की भेली बांटी जाती है। एक प्रकार से यह नए सदस्य का परिचय होता है। यह छाट परम्परा राजस्थान व मध्यप्रदेश के अलावा यूपी, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, गुजरात, ओर महाराष्ट्र में बखूबी निभाई जाती है। हिंदू समाज में गुर्जर जाति की अन्य जातियों से अलग ही अनूठी परम्पराएं प्रचलित है। जो कि थोड़ा विपरित देखने को मिलता है। दीपावली पर दोपहर एक बजे तक यह परंपरा सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार निभाई जाती है। इस बीच घरों में चूल्हे भी नहीं जलते है। नदी जलाशयों में तर्पण के बाद घर आकर बड़े बूड़ों व पूर्वजों को धूप अगरबत्ती की जाती है। इसके बाद बच्चे युवा, बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते है।तथा इसके बाद ही घरो में भोजन करते है।

मान्यता है कि यह छाट परम्परा भगवान राम के जमाने से चल रही है-
अन्य समाज में भी चर्चा का विषय रहता है की आखिर गुर्जर समाज दीपावली पर ही पितरों का तर्पण क्यों करते है। तो एडवोकेट अर्जुन चांदना ने बताया कि धार्मिक मान्यता इस प्रकार है कि यह परम्परा भगवान राम के समय से चल रही है।  समाज के बुजुर्गों का कहना है कि गुर्जर जाति भगवान राम के रघुवंशी कुल की ही एक आदिवराह जाति है। अर्थात गुर्जर राम के पुत्र लव की संतान है। भगवान राम 14 वर्ष वनवास से आने के बाद उनके पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। इसी परम्परा में गुर्जरों में भी श्राद्ध की परिपाटी बनी हुई है। इसका वर्णन देवनारायण की कथा में भी किया गया है। वही शहरों में भी समाज के लोग बाजार के सभी कार्य पूर्ण कर पित्रों के श्राद्ध के लिए नदी तालाबों कुओं बावड़ियों की ओर निकलते है।

(जुटती है समाज की भीड़-)

सदियों से इस परंपरा को निभाने के लिए गुर्जर समाज के पोसवाल, भड़ाना, खटाणा, चौहान, बैंसला, कसाना, चांदना, बागड़ी, कोली, चाड़, गोचर, तंवर, टाटड़, गुंजल, गाडरी, गायरी, फागणा, ढोई, हाड़ा, हरशाल व गराड़ सहित सभी क्षत्रिय गोत्रों के गुर्जर लोग अपने पैतृक गांव पहुंचकर पूर्ण करते है। मुख्यत: जिले में झालरापाटन, रटलाई, बकानी, घाटोली, भालता, अकलेरा, मनोहरथाना, खानपुर, भवानीमंडी, सुनेल, पिड़ावा, आदि क्षेत्रों में यह परम्परा देखने को मिलती है। 


(दीपावली के दिन ब्राह्मणों का नही देखते चेहरा-)

गुर्जर समाज के ओमप्रकाश गुर्जर  ने बताया कि धार्मिक मान्यता अनुसार समाज के आराध्य भगवान देवनारायण जन्म उपरांत नामकरण के समय राण के राजा बागड़ के कहने पर चार ब्राह्मणों ने उन्हें मारने का प्रयास किया था। जिस कारण भगवान देवनारायण ने उन्हें श्राप दिया था कि दीपावली के दिन ब्राह्मणों का चेहरा नही देखेंगे।

(घरो में दूध भी नहीं पहुचता इस दिन-)

क्षेत्र में गुर्जर समाज के लोग गोपालन पशुपालन दुग्ध के काम काज से जुड़े हुए है। इसलिए दीपावली के दिन लोगो के घरों में या डेयरियों पर दुग्ध देने नहीं जाते है।

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