मन मे है संकल्प सघन..

मन मे है संकल्प सघन...

लक्ष लक्ष बढ़ते चरणों के साथ चलें हैं कोटि चरण।
दूर ध्येय मन्दिर हो फिर भी मन में है संकल्प सघन॥ ध्रु.॥

व्रती भगीरथ ने यत्नों से गंगा इस भू पर लाई।
गंगधार सी संघधार भी भरत भूमि पर है आई।
अगणित व्रती भगीरथ करते नित्य निरन्तर प्राणार्पण॥1॥

चट्टानों सी बाधाओं पर चलो रचें हम शिल्प नया।
सेवा के सिंचन से मरु भू पर विकसाएं तरु छाया।
सद्भावों से संस्कारों से भर देंगे यह जन गण मन॥2॥

जन जन ही अब जगन्नाथ बन रथ को देता नयी गति।
मार्ग विषमता का हम छोड़ें प्रकटाएं समरस रीति।
हिन्दू एक्य का सूरज चमके भेद भाव का हटे ग्रहण॥3॥

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