अनुशासन में बांध दिया माँ सपनो का संसार..

 🌿🌺अनुशासन🌺🌿

जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन अलग अलग हैं. जैसे भोजन का अनुशासन अलग हैं. रहन सहन का अनुशासन अलग हैं. जीवन जीने के तौर तरीको का अनुशासन अलग हैं. अनुशासन हमारे जीवन के लिए ही आवश्यक नही, बल्कि प्रकृति ने स्वयं को भी अनुशासनबद्ध करके रखा हैं. बिना अनुशासन के वह अनियंत्रित होती हैं. प्रकृति का अनुशासन सभी पर समान लागू होता हैं. लेकिन मानव जीवन का अनुशासन देश काल की परिस्थतियों के अनुसार बदलता हैं.

पतंजली ने भी योगदर्शन के आरम्भिक सूत्र में सबसे पहले योग अनुशासन की बात कही हैं. अथ योगानुशासनम. अनुशासन है हमें सचेत करने के लिए. इस बात पर ध्यान आकर्षित करने के लिए कि अब हम विशेष पथ पर चल रहे हैं, विशेष नियमों का पालन करना अब जरुरी हैं, अन्यथा हम भटक सकते हैं, दिग्भ्रमित हो सकते हैं.


अनुशासन है नीति नियमों का पालन करना. अनुशासनों का निर्धारण मनुष्य स्वयं करता हैं, इनमें आवश्यकतानुसार फेर बदल भी करता हैं. लेकिन अनुशासन का निर्माण बहुत सोच समझकर किया जाता हैं. अनुशासन होते ही इसलिए है ताकि जीवन को सही दिशा दी जा सके. इनके माध्यम से जीवन की ऊर्जा का अनावश्यक व्यय नही होता, बल्कि सुनियोजन होता हैं.


अनुशासन नदी के दो किनारों की तरह हमें बहकने तथा भटकने नही देता. अनुशासन हमारे जीवन में वह रेखा खीच देता हैं, जो हमारे लिए अत्यंत जरुरी है और जिसे पार करने में हमारे नुकसान की संभावना हैं. इसलिए विशेष कार्यों में अनुशासन का पालन करना अत्यंत जरुरी हो जाता हैं. अनुशासन के अभाव में सारी व्यवस्थाएं गड़बड़ा जाती हैं.


अनुशासनहीनता होने पर नुक्सान होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इसलिए किसी बड़े कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व अनुशासन के नीति नियम निर्धारित कर लिए जाते हैं. और उसी के अनुसार कार्यक्रम सम्पन्न किये जाते हैं, जरा भी अनुशासन की अवहेलना होने वाले कार्यक्रम की सफलता में बाधा डालती हैं.


हमारी प्रकृति को भी अनुशासन अति प्रिय हैं. प्रकृति की इसी अनुशासनप्रियता के कारण ही ऋतुएँ समय पर आती और चली जाती हैं. मौसम में समयानुसार ही परिवर्तन होता हैं और हम यह निश्चित कर पाते है कि अमुक महीने में वर्षा ठंड या गर्मी होगी. यदि प्रकृति का अनुशासन हमें पता नही होता तो इस बात का निर्धारण करना कठिन हो जाता कि आने वाला समय क्या लेकर आने वाला हैं.


आज प्रकृति और मानव जीवन दोनों का ही अनुशासन गड़बड़ाया हैं. . मनुष्य जीवन का भी अनुशासन गड़बड़ाया हैं. फलतः कई तरह की जीवन शैली से सम्बन्धित बीमारियाँ प्रकट होने लगी हैं. जब तक मानव अनुशासन के इस विशेष महत्व को नही समझेगा और उसका पालन नही करेगा, उसे प्रकृति उसकी इस अनुशासनहीनता का दंड विभिन्न स्वरूप में देती रहेगी.


जीवन में अनुशासन का महत्व:-

अनुशासन व अनुशासनहीनता को समझने के लिए पानी का उदहारण बहुत सटीक और उपयुक्त हैं.पानी बाढ़ के रूप में बहता हैं और बाँध के द्वारा भी बहता हैं. बाढ़ का पानी अनुशासनविहीन होता हैं. उसके पास बहने और बधने की कोई विधि नही होती, इसलिए वह कोई लाभ नही पहुचाता, केवल बह जाता हैं और बहुत नुकसान पहुचाता हैं, विनाश का कारण बनता हैं.


जबकि बाँध का पानी मर्यादा में रहता हैं तटों की मर्यादा से बंधा रहता हैं. उसकी यह मर्यादा और अनुशासन उसे विकास का माध्यम बना देती हैं. पानी दोनों ही अवस्था में हैं और पानी की बूद जीवनदायिनी होती हैं, लेकिन अनुशासनविहीन होने पर बाढ़ का पानी विनाश करता है और अनुशासन में रहकर बाँध का पानी विकास कार्यों में सहयोगी होता हैं.


इसलिए हमें भी अपने जीवन को टटोलना चाहिए, कि हमारा जीवन अनुशासन के दायरे में हैं अथवा नही. अनुशासन मतलब जीवन के सिद्धांत, नीति नियम, मर्यादाएं, सीमाएं हमारे जीवन में हैं अथवा नही. यदि है तो हम उनका कितना पालन कर पाते हैं, यदि नही है हम किसी अनुशासन को नही मानते हैं, इन्हें बंधन समझते हैं तो फिर हमारे जीवन की स्थिति कैसी हैं. नीति नियम इसलिए बनाएं जाते हैं ताकि जीवन की ऊर्जा व्यर्थ बर्बाद न हो.


इसका सदुपयोग हो. साधना इसलिए की जाती है और इसके नियम निर्धारित किये जाते हैं, ताकि साधना सही मार्ग पर, सही ढंग से आगे बढ़े और अपने गंतव्य तक पहुच सके. सिद्धि को प्राप्त हो सके. अन्यथा साधना तो बहुत से लोग शुरू करते हैं लेकिन नियम अनुशासनों के अभाव में भटककर रह जाते हैं.


यह जरुरी नही कि सदैव दूसरों के बने बनाएं अनुशासन पर चला जाए और उनका पालन करते रहा जाए. यदि जीवन में कुछ विशेष करना हैं तो अपने जीवन का अनुशासन हमें स्वयं बनाना होगा और उसका पालन करना होगा. अनुशासन का पालन करने क्व लिए छोटे छोटे संकल्प ले और उन्हें पूरा करे और इस तरह अपने जीवन में अनुशासन की शुरुआत करे.


आशा करता हूँ दोस्तों आपको ये मेरा प्रयत्न पसंद आया होगा।

धन्यवाद।

:- अर्जुन

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