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Showing posts from June, 2020

युग करने निर्माण जवानी जागा करती है...

युग का करने निर्माण जवानी जागा करती है....! करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है.....!! सुख-वैभव के सपनों में जब जग सोता रहता है, पापों की गठरी को मानव जब ढोता रहता है......| अरमानों को पूरा करने की खातिर जब मानव, पथ में विपदाओं के कांटे-से बोता रहता है.......|| तब करने को कल्याण, जवानी जागा करती है....! करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है......!! जब धरती की मानवता का इतिहास बदलता है, मानव के उर का चिर संचित विश्वास बदलता है......| जब एक-एक इंसान बदल जाता है धरती का, जब ब्रहमचर्य भी लेकर के संन्यास बदलता है......|| तब करने को उत्थान, जवानी जागा करती है.....! करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है.....!! जब परिवर्तन हो जाता है, संसारी जीवन का, जब परिवर्तन हो जाता है, मानव के तन-मन का.....| जब विकट रूप में, जीवन की यह स्वांसा चलती है, जब परिवर्तन हो जाता है जग के इस उपवन का.....|| तब बन करके वरदान, जवानी जागा करती है.....! करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है.......!! जब कंस और रावण से अत्याचारी होते हैं, दुर्योधन, दुशासन जैसे व्याभिचारी होते हैं......| अन्यायों से उत्...

बढ़े निरन्तर हो निर्भय..

बढें निरंतर हो निर्भय, गूँजे भारत की जय-जय ।।धृ।। याद करें अपना गौरव याद करें अपना वैभव स्वर्णिम युग को प्रकटाएँगे, मन में धारें दृढ निश्चय ।।१।। वीरव्रती बनकर हुँकारें, जन-जन का सामर्थ्य बढ़ाएँ । दशों दिशा से ज्वार उठेगा, चीर चलेंगे घोर प्रलय ।।२।। कर्म समर्पित हो हर प्राण, यश अपयश पर ना हो ध्यान । व्यमोही आकर्षण तज दें, आलोकित हो शील विनय ।।३।। सृजन करें नव शुभ रचनाएँ, सत्य अहिंसा पथ अपनाएँ । मंगलमय हिंदुत्व सुधा से, छलकाएँगे घट अक्षय ।।४।।

मन मे है संकल्प सघन..

मन मे है संकल्प सघन... लक्ष लक्ष बढ़ते चरणों के साथ चलें हैं कोटि चरण। दूर ध्येय मन्दिर हो फिर भी मन में है संकल्प सघन॥ ध्रु.॥ व्रती भगीरथ ने यत्नों से गंगा इस भू पर लाई। गंगधार सी संघधार भी भरत भूमि पर है आई। अगणित व्रती भगीरथ करते नित्य निरन्तर प्राणार्पण॥1॥ चट्टानों सी बाधाओं पर चलो रचें हम शिल्प नया। सेवा के सिंचन से मरु भू पर विकसाएं तरु छाया। सद्भावों से संस्कारों से भर देंगे यह जन गण मन॥2॥ जन जन ही अब जगन्नाथ बन रथ को देता नयी गति। मार्ग विषमता का हम छोड़ें प्रकटाएं समरस रीति। हिन्दू एक्य का सूरज चमके भेद भाव का हटे ग्रहण॥3॥