पलायन, आज़ाद भारत का, आज़ाद भारत में.... शहरों से गांवों की ओर पलायन शहर स्वार्थी होता है। खून पसीना निचोड़कर छोड़ देता है। इसलिए गए हो तो गांवों से मत लौटना,जाते जाते सोचना जिन साहबों की हवेलियां तुमने बनाईं,जिनके घरों की दीवारों पर तुमने अरमानों का इंद्रधनुष बनाया।मुसीबत के वक्त तुम्हें उन्होंने अंधेरे में क्यों छोड़ दिया।जाते जाते सोचना कि तुम्हारे गांव का आसमान शहरों की धुंध से कहीं ज्यादा चमकदार है। मत लौटना ताकि शहर को समझ आए तुम्हारी कीमत, तुम्हारे पसीने का मोल, तुम्हारे होने का मतलब. याद रखना शहर चालाक होता है । वो इंसान को इंसान नहीं मतलब का सामान समझता है। पैसे का हिसाब समझता है,तुम्हें दो वक्त की रोटी देकर तुम पर एहसान समझता है।
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