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मृत्युभोज कुरीति नहीं,समाज और रिश्तों को सँगठित करने के अवसर की परम्परा है - एडवोकेट अर्जुन सिंह गुर्जर

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ब्लॉग - "#मृत्युभोज...!" *मृत्युभोज के विरोध पर बहुत लिखा जा रहा है आजकल, पर मेरा मत जरा अलग है...!!"* मृत्युभोज कुरीति नहीं है. समाज और रिश्तों को सँगठित करने के अवसर की पवित्र परम्परा है, हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा ज्ञानी थे।  आज मृत्युभोज का विरोध है, कल विवाह भोज का भी विरोध होगा... हर उस सनातन परंपरा का विरोध होगा जिससे रिश्ते और समाज मजबूत होता है।  इसका विरोध करने वाले ज्ञानियों हमारे बाप दादाओ ने रिश्तों को जिंदा रखने के लिए ये परम्पराएं बनाई हैं। यह सब बंद हो गए तो रिश्तेदारों, सगे समबंधियों, शुभचिंतकों को एक जगह एकत्रित कर मेल जोल का दूसरा माध्यम क्या है... दुख की घड़ी मे भी रिश्तों को कैसे प्रगाढ़ किया जाय ये हमारे पूर्वज अच्छे से जानते थे।  हमारे बाप दादा बहुत समझदार थे, वो ऐसे आयोजन रिश्तों को सहेजने और जिंदा रखने के किए करते थे। हाँ ये सही है की कुछ लोगों ने मृत्युभोज को हेकड़ी और शान शौकत दिखाने का माध्यम बना लिया, आप पूड़ी सब्जी ही खिलाओ।  कौन कहता है की 56 भोग परोसो... कौन कहता है कि 4000-5000 लोगों को ही भोजन कराओ और दम्भ दिखाओ।  मैं खुद दिखावे का व...