अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम राष्ट्र की सेना आखिर तालिबानियों से क्यों नहीं लड़ी? तालिबानी तो 75 हजार ही हैं, जबकि अफगानिस्तान की फौज तीन लाख 50 हजार की है। तो क्या मुस्लिम राष्ट्रों ने भी अफगानिस्तान के लोगों को ताबिलान के भरोसे छोड़ दिया है। 1997 में इसी तालिबान ने तब के राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को मार कर शव को राष्ट्रपति भवन के सामने ही लटका दिया था, इसलिए मौजूदा राष्ट्रपति अशरफ गनी पहले ही भाग गए। ========== राजधानी काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान पर मुस्लिम कट्टरपंथी सोच वाले संगठन तालिबान का कब्जा हो गया है। उम्मीद है कि तालिबान के प्रमुख नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान के नए राष्ट्रपति बन जाएंगे। अफगानिस्तान पर तालिबान का तब कब्जा हुआ है, जब अमरीका की फौज चली गई। अमेरिकी सेना के अधिकारियों का कहना था कि अब अफगानिस्तान की फौज इतनी समक्ष हो गई है कि तालिबान के लड़कों से लड़ सकती है, लेकिन पूरी दुनिया ने देखा कि तालिबान के सामने अफगानी फौज ने चुपचाप सरेंडर तक कर दिया। तालिबानी लड़ाकों को कहीं भी सेना के साथ संघर्ष नहीं करना पड़ा। सवाल उठता है कि क्या एक मुस्लिम राष्ट्र की सेना इतन...
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